Wednesday, December 10, 2008

मेरी बातें: डा0 पी0 सी0 दूबे

तराई तरंग आपके दरबार में

बड़ी विनम्रता के साथ हम ‘तराई तरंग’ के इस प्रवेशांक को आपके समक्ष परोस रहे ह। हमें ज्ञात है कि हमारी यह पत्रिका अन्य पत्रिकाओं के तरह ताम-झाम से युक्त नहीं है। कारण है कि यह किसी पूंजिपति की भोपू नहीं है। यह कुछ जमीन से जुड़े लोगों के एक मिशन का फल है, जिसका लक्ष्य है - ‘तराई तरंग’ आम लोगों के दर्द, सघर्ष तथा खुशी को अभिव्यक्ति दे तथा उनकी आवाज बने। हमें मालूम है कि हमारे इस प्रयास तथा मिशन का कुछ नासमझ व्यक्ति मजाक भी उडा सकते हैं । परन्तु हम इसे भी प्रेरणा रुपी प्रसाद के रुप में ही ग्रहण करेंगे ।
‘तराई तरंग’ का प्रयास होगा तथा समय की मांग भी है कि गौरवशाली हिन्दी पत्राकारिता की परम्परा को सशक्त करने का यज्ञ जारी रखा जाय। अन्यथा यह जारी ‘खाओ-पीओ-फेंको ’ संस्कृति की भेंट चढ़ जायेगी। हमारी पत्रिका का भौगोलिक लक्ष्य हिमालय तथा विंध्य की पहाड़ियों के बीच स्थित उतर भारत तथा नेपाल है। यहाँ बसे करोड़ों लोगों की भावनाओं, समस्याओं, संस्कृतियों एवं आस्थाओं की तरंगों को अभिव्यक्ति देना है।
यह क्षेत्रा अद्भुत भौगोलिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा धर्मिक विविध्ताओं एवं उनके बीच समन्वय तथा संवाद का संगम है। इस भू-भाग में मानवजाति की तीनों मुख्य प्रजातियाँ
(मंगोली, आर्य तथा घुंघराले बाल एवं ताम्र काले रंग के लोग ) निवास करतीं हैं। इनके बीच स्पष्ट अन्तर विद्यमान हैं, परन्तु इनके बीच गंगा-हिमालय सदृश्य अन्योनाश्रय संबंध् तथा सहअस्तित्व भी चिरकाल से कायम रही है। निःसंदेह यह एक अनोखी सच्चाई है, जो दुनिया के अन्य क्षेत्रों में दुर्लभ है।
हमारा भगीरथ प्रयास होगा कि इस संबंध् तथा सहअस्तित्व को हम अपने रचनात्मक लेखन से सिंचे तथा इस इलाके के चहुमुखी विकास हेतु अपनी यथोचित भूमिका निभाएं। हम इस लक्ष्य के तरपफ पूर्ण समर्पण के साथ तभी अग्रसर हो सकेंगे, जब आपका स्नेह, सदभाव, शुभकामनाएं एवं सहयोग हमारे साथ हो।
हमारा भौगोलिक कैनभस काफी विशाल है। इसे कभर करना कठीन अभियान है। परन्तु हम धीरे-धीरे इस कठिनाई पर भी काबू पालेंगे। अतः हमारी शुरुआत चम्पारण क्षेत्रा से हो रहा है। वास्तविकता है कि चम्पारण हमारे लक्षित भौगोलिक कैनभस का लघुतम रुप है।
इस अंक में हमारा फोकस संसदीय चुनाव पर है। वैसे तो चुनावी बिगुल औपचारिक रुप से नहीं बजा है। परन्तु चुनावी कसरतें शुरु हो गयी हैं। अतः हमने निर्णय लिया कि क्यों न हम ‘तराई तरंग’ के माध्यम से चुनावी दंगल का बिगुल बजा दे।
हमारे चुनावी विशलेषनों से लगेगा कि हमने जातिवाद को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। परन्तु सत्य यह है कि चुनावी जंग में सभी जातीय संख्या बल तथा समीकरण रुपी हथियारों का ही उपयोग करते हैं, भले ही भाषणबाजी कुछ और करे। हमने मात्रा इस सत्य पर से पर्दा हटा दी है। हमारी भावना किसी के राजनीतिक हित को ठेस पहुचाना कदापि नहीं है। हमारे विशलेषनों से यह भी संदेश जाता है कि किसी एक जाति के बल पर कोई भी चुनावी समर में विजय का सपना नहीं देख सकता। प्रजातंत्रा का मूल मंत्र ही है कि विभिन्न जातियों तथा समुदायों के बीच संवाद कायम कर राष्ट्र के संसाध्नों को मिल
बाटकर उपयोग करना जिससे सभी की यथोचित आवश्यकताएं मर्यादित ढ़ग से पूरी हो सके।
हमारी आपसे प्रार्थना है कि आप अपनी प्रतिक्रिया, विचार, समस्या तथा अन्य प्रकार के लेखनों को भेजें। हम उन्हें ‘तराई तरंग’ में जरुर स्थान देंगे। धन्यवाद ।

2 comments:

मनोज द्विवेदी said...

Dubey ji ko Dwivedi ka namaskar... sir kuchh mat sochiye. apka ek bhakt ban gaya hun sir...apke sanidhya ki aas hamesha rahegi

BrijmohanShrivastava said...

जाती के बल पर कोई जीतने का सपना नही देख सकता /मगर सर यही तो हो रहा है /टिकिट भी उसी हिसाब से दिए जाते है